इस्लाम में नमाज़

Ahmet Sukker

इस्लाम में नमाज़

नमाज़ (Ṣalāh) इस्लाम में अल्लाह की इबादत का सबसे मूल रूप है।
यह दिन में पाँच बार अदा की जाती है: सुबह (फ़ज्र), दोपहर (ज़ुहर), दोपहर बाद (असर), शाम (मग़रिब) और रात (ईशा)।
हर नमाज़ का अपना समय होता है और यह अल्लाह को याद करने, शुक्र अदा करने और उनसे जुड़ने का एक अवसर होता है।
नमाज़ में कुछ खास हरकतें होती हैं: खड़े होना, झुकना (रुकू), सजदा और बैठना। ये हरकतें केवल शारीरिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक अर्थ भी रखती हैं।
सजदा वह पल है जब इंसान अल्लाह के सबसे क़रीब होता है।
नमाज़ अरबी में पढ़ी जाती है क्योंकि यह क़ुरआन की भाषा है, लेकिन उसका मतलब समझना भी प्रोत्साहित किया जाता है।
नमाज़ में जो पढ़ा जाता है, वह अल्लाह की प्रशंसा, दया की प्रार्थना और मार्गदर्शन की याचना होती है।
नमाज़ का उद्देश्य है कि इंसान दुनियावी व्यस्तताओं से हटकर अपने रचयिता से जुड़ सके। यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक जागरूक रूख है।
🕌 नमाज़ एक मुसलमान के दिल को दिन में पाँच बार अल्लाह की ओर मोड़ने का तरीका है।

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